Wednesday, October 29, 2008

आज गांधी और जिन्ना क्या सोचते होंगे?

परदे के पीछे.सुना है कि यूटीवी ने ‘तुलसी’ स्मृति इरानी को महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित लंबा सीरियल बनाने का प्रस्ताव दिया है। अब तक महात्मा के जीवन पर बनी फिल्मों में श्रेष्ठतम फिल्म सर रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ और गांधीजी की प्रेरणा से बनी कथा फिल्म ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ हैं।

अनुपम खेर की ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ भी श्रेष्ठ प्रयास है। श्याम बेनेगल की ‘मेकिंग ऑफ महात्मा’ भी महान प्रयास है। इस विषय पर घटिया फिल्में थीं हॉलीवुड की ‘नाइन अवर्स टू रामा’ और अनिल कपूर की ‘गांधी माय फादर।’ स्मृति इरानी एक राजनीतिक दल की सक्रिय सांसद हैं तो क्या वे अपने दल के दृष्टिकोण से गांधी को प्रस्तुत करेंगी? यह उनका अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है।

भारत में तो गांधी को प्रस्तुत करने के प्रयास हुए हैं परंतु पाकिस्तान में जिन्ना पर शायद कोई फिल्म नहीं बनी है। भारत में भुट्टो के फांसी दिए जाने पर आईएस जौहर ने नाटक प्रस्तुत किया था परंतु पाकिस्तान में कोई प्रयास नहीं हुए। एक सेक्युलर मुल्क में हर तरह की फिल्म बन सकती है।

दरअसल आठ अगस्त 1947 को दिल्ली में मोहम्मद अली जिन्ना ने बयान दिया था कि पाकिस्तान एक सेक्युलर देश होगा परंतु 14 अगस्त तक कुछ और शक्तियां उन पर हावी हुईं और पाक को इस्लामिक देश घोषित किया गया।

उन दिनों बीमारी के कारण जिन्ना भीतर से टूट गए थे या यह भी मुमकिन है कि बंटवारे की त्रासदी से उन्हें अपने संघर्ष की सारहीनता का अहसास हो गया था। जैसे 1964 में नेहरू की मृत्यु का मेडिकल प्रमाण पत्र हृदयाघात बताते हैं परंतु चीन द्वारा दिए गए विश्वासघात ने उन्हें पहले ही मार दिया था।

शायद ठीक ऐसा ही मोहम्मद अली जिन्ना के साथ हुआ कि पाकिस्तान का निर्माण उन्हें अपना स्वप्नभंग लगा हो। उन्हें अहसास हुआ हो कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के पागल घोड़े ने उन्हें किस खाई में फेंक दिया। बहरहाल मृत्यु के परे किसी संसार में महात्मा गांधी और मोहम्मद अली जिन्ना मिले जरूर होंगे और दोनों ने अपने आदर्श के खंडित होने पर दुख भी मनाया होगा।

आज दोनों ही अपनी रचनाओं (देशों) में सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर बेहद दुखी होंगे। अगर वे पुन: अपने देशों में प्रगट हो सकें तो यकीनन फिर मार दिए जाएंगे। शहादत कोई आदत तो नहीं होती, कोई लत या बचपन का कुटैव भी नहीं होती परंतु मारना या हत्या करना जरूर आदत बन जाती है।

मोहम्मद अली की महत्वाकांक्षा मर चुकी है परंतु गांधीवाद आज भी छोटे-छोटे टापुओं की तरह जन समुद्र में मौजूद है। गांधीवाद कभी आऊट डेटेड नहीं हो सकता, क्योंकि वह मनुष्य की अपार करुणा का श्रद्धा गीत है। मोहम्मद अली नाइटमेयर (दु:स्वप्न) थे। गांधी का ख्वाब मानवता की अलसभोर का सपना है जो सच हो सकता है।

गौरतलब है कि महात्मा गांधी आज के गुजरात के बारे में क्या सोचते होंगे? क्या वे मोदी शासित प्रदेश में पुन: जन्म लेना चाहेंगे? यह भी संभव है कि गांधी अमेरिका या चीन में नया जन्म लेना चाहें? वे कहीं भी जन्में काम पूरी मानवता का ही करेंगे।

गांधीजी औऱ जिन्ना के बारे में सारी बातें हिन्दुस्तान से बंटावारे के बाद पाकिस्तान बनने कसंदर्भों में ही की जाती हैं.....जिसके लिए बड़ी तादाद में मुस्लिम जिन्ना को आज़म की श्रेणा में रखते हैं..तो वहीं भारत का एक बड़ा तबका बंटवारे के लिए गांधीजी को दोषी मानता है..सच जो भई हो,,,,,,,लेकिन जयप्रकाश चौकसे का ये लेख चिन्तन की चादर का विस्तार है...इसलिए साभार यहां प्रकाशित है........
------------------

लेख- जयप्रकाश चौकसे Thursday, October 02, 2008 13:36 [IST]
दैनिक भास्कर से साभार प्रकाशित

No comments: