Wednesday, October 29, 2008

क्या भारत गाँधी को भूल गया है?

बीबीसी के इस प्रश्न के जवाब में आए उत्तरों से नए दरवाजों से रौशनी आती लगती है...लेकिन अगर झरोखे ही सही रोशनी कि किरण दिख जाए तो रास्ता ढ़ूढ़ने में मदा जरूर मिलती है....ऐसे ही रास्ते की तलाश में बीबीसी को मिले उत्तों को साभार प्रकाशित किया जा रहा है....पढ़े और गुने ........
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महात्मा गाँधी ने राजनीतिक जीवन में सदाचार, सच्चाई और ईमानदारी पर ज़ोर दिया था. उन्होंने पिछड़े और ग़रीब तबक़े के विकास को सच्चा विकास कहा, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जातिवाद और हिंसा से दूर रहने का सबक़ सिखाया.
भारत में आज राजनीतिक जीवन में ईमानदारी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती. विकास हो रहा है लेकिन ग़रीबों और पिछड़ों का नहीं बल्कि महानगरों में रहने वाले मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय लोगों का. हिंसा, भ्रष्टाचार और जातिवाद भारत की बड़ी समस्याएँ हैं.

क्या महात्मा गाँधी ने इसी तरह के भारत का सपना देखा था? क्या महात्मा गाँधी के आदर्शों का पालन आज के युग में संभव है? क्या भारत की समस्याओं का हल गाँधीवाद में छिपा है? भारत में गाँधीवादी मूल्यों के पतन के लिए आप किसे ज़िम्मेदार मानते हैं?

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विचार यहाँ पढ़िए
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इन्होंने भी पत्र लिखे हैं:
दीपक तिवारी, इंदौर, भास्कर डोभाल, वियेना, ऑस्ट्रिया, तारक पटेल, ऑस्ट्रेलिया, गांडाभाई पटेल, न्यूज़ीलैंड, कन्हैया राजेश, नई दिल्ली, आशुतोष कुमार, नई दिल्ली, जावेद ख़ान, कुवैत

भारत गाँधी जी को कभी नहीं भुला सकता लेकिन हमें गाँधी जी को फूल मालाएँ चढ़ाने और नारे लगाने से आगे भी याद रखना होगा. हमें गाँधीवाद आज के दौर में ढालना होगा क्योंकि साठ साल पहले हालात बिल्कुल अलग थे. पंकज मुकाती, भोपाल, मध्य प्रदेश

साठ साल पहले गाँधी जी ने जिस भारत की कल्पना की थी वो भारत आज नहीं है. हमारी खोखली राजनीति ने हमारे देश को दीमक की तरह चाट लिया है. गाँधी जी ने जो लड़ाई लड़कर देश को आज़ादी दिलाई, उनसे आज के नेताओं को सबक लेना चाहिए. फ़िरोज़ ख़ान, कुवैत

गाँधी जी ने हथियारों के बिना ही देश को जिस तरह से आज़ादी दिलाई उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता. हिम्मत सिंह भाटी, जोधपुर, राजस्थान

गाँधी जी जैसे महान नेता को कभी नहीं भुलाया जा सकता. पूरी दुनिया ही सालों साल तक गाँधी जी के नाम को नहीं भुला सकती. जावेद ख़ान, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

आज के संदर्भ में गाँधी जी के धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक विचारों की विस्तार पूर्वक समीक्षा होनी चाहिए. अक्षत अग्रवाल, कुवैत

गाँधी जी ने एक वर्गहीन भारतीय समाज का सपना देखा था. उनके सपनों का भारत ऐसा था जहाँ कोई ग़रीब या अमीर नहीं होगा, सभी केवल भारतीय होंगे. आज के दौर में गाँधी का ये सपना तो निश्चय ही पूरा नहीं हुआ है. सुभाशीष मलिक, मुंबई

अगर देश से चोरों, रिश्वतखोरी और ओछी राजनीति अगर देश से हट जाए तो शायद हम गाँधी के सपनों का भारत बना सकते हैं.


अज़ीम मिर्ज़ा, दुबई

गाँधी एक महान हस्ती का नाम है. देश और दुनिया को उनके योगदान पर हमें गर्व है. हमने बहुत विकास किया है, बहुत ऊँचाई तय की है लेकिन वो भारत नहीं बना सके जो गाँधी जी का सपना था. सत्य, अहिंसा और बहुत पिछड़े वर्ग के लोगों को मान और सम्मान, यही था गाँधी जी का सपना. अगर देश से चोरों, रिश्वतखोरी और ओछी राजनीति अगर देश से हट जाए तो शायद हम गाँधी के सपनों का भारत बना सकते हैं. अज़ीम मिर्जा, दुबई, संयुक्त अरब अमीरात

असलियत यही है कि समय बहुत बदल गया है. आज के दौर में मध्यमवर्गीय व्यक्ति गाँधी जी के सिद्धांतों पर चल कर कैसे जीवित रह सकता है जबकि चारों तरफ़ गला काट प्रतिस्पर्धा, भ्रष्टाचार और उच्च तकनीक वाले अपराधों का बोलबाला है. लेकिन फिर भी हमें गाँधी जी के सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करनी चाहिए. अनाम

मैं इस बात से सहमत हूँ कि देश ने महात्मा गाँधी को भुला दिया है. लोग गाँधी जी के साथ जुड़ी कुछ नकारात्मक बातों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करते हैं. मुझे गाँधी जी के बारे में कक्कड़ की पुस्तक पर अफ़सोस हुआ है. आनंद पाँडे, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश

महात्मा गाँधी सिर्फ़ एक नाम नहीं है, अगर कोई उनके दर्शन को पढ़े तो अथाह सागर नज़र आएगा. लेकिन भारत में स्कूल स्तर पर भी गाँधी जी के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी जाती. अमित उपाध्याय, टोरंटो, कनाडा

महात्मा गाँधी ने दुनिया को जीवन दर्शन का सिद्धांत दिया. भारत में इसी मुद्दे पर कशमकश चल रही है कि गाँधी जी के सिद्धांत पर अमल किया जाए या फिर उसमें कुछ फेरबदल की जाए. मेरा ख़याल है कि हमारे राष्ट्रपति कुछ मामलों में गाँधी जी की तरह हैं. हमें गाँधी जी के दर्शन को आज के हालात के अनुसार समझना और लागू करना होगा. आशुतोष, विस्कोन्सिन, अमरीका

भारत ने गाँधी जी को कभी नहीं भुलाया है लेकिन हमें गाँधी जी को आज के आधुनिक युग में भी याद रखना होगा, और ऐसा सिर्फ़ नारेबाज़ी या फिर उनकी मूर्तियों पर मालाएँ चढ़ाने भर के लिए ही नहीं होना चाहिए. हमें गाँधीवाद को आधुकनिकता के साथ जोड़कर स्वीकार करना होगा. पंकज पुकाती, भोपाल

गाँधी जी ने साठ साल पहले जिस भारत की कल्पना की थी आज का भारत उससे कही आगे है. वक़्त बदला है, बहुत सी चीज़ों के मायने भी बदले हैं. ऐसे में भारत के साथ ग़लत क्या है? आज के दौर में बेईमान कौन नहीं है. कौन बिल्कुल सच्चा है. मैं क़रीब 35 साल तक भारत में रहा हूँ और अब दुनिया घूम रहा हूँ. मेरे भारत में जो है, वह दुनिया में नहीं है. योगेश, ब्रेम्पटन, कनाडा

शांति के देवता बापू जी के सिद्धांत सुनहरे शब्दों में तो लिखे गए लेकिन उन पर क्या कोई अनुकरण करता है. बापू जी की मोम की प्रतिमा के साथ उनके सुनहरे सिद्धांत भी लंदन के संग्रहालय में लिखे जाने चाहिए न कि सिर्फ़ ऐश्वर्या रॉय की प्रतिमा वहाँ लगे. गुडो राजन, शिकागो, अमरीका

भारत कभी नहीं भूल सकेगा कि वहाँ कोई ऐसा भी व्यक्तित्व पैदा हुआ जो अपने उसूलों पर सारी दुनिया की मिसाल बन गया. सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू तो नहीं रहे लेकिन उनके आदर्श आज भी क़ायम हैं. लेकिन मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि नैतिकता की दुहाई ही सिर्फ़ आज गाँधी जी के आदर्शों की याद दिला रही है. वो नैतिकता और आदर्श आज सिर्फ़ एक कहानी बन कर रह गए हैं. जनार्दन त्रिपाठी, छत्तीसगढ़

आज कितने लोग जानते हैं कि गाँधी जी ने स्वतंत्र भारत के लिए क्या सपना देखा था. उनका सपना साकार करने के लिए ज़रूरी है कि पहले उनके सपने को समझा जाए. आज ज़्यादातर भारतीय अपना ही स्वार्थ साधने में लगे हैं. अब देश को गाँधी जैसे नेता की ज़रूरत है. मुंजाल ध्रुव, कनाडा

ऐसा नहीं है कि लोग गाँधी जी को भूल गए हैं. सिर्फ़ ये हुआ है लोग उन्हें ठीक से जानते नहीं. मैंने गाँधी जी के बारे में 27 वर्ष की उम्र में पढ़ना शुरू किया. राष्ट्रपिता के बारे में इतनी देर से पढ़ना शर्म की बात है. जो भी, मेरी नज़र में गाँधी जी असाधारण इच्छाशक्ति वाले साधारण इंसान थे. अमित लांबा, अमरीका

भारत में जाति, धर्म, ऊँच-नीच सब छोड़ कर प्रतिभावान लोगों को मौक़ा दिया जाए तब ही देश गाँधी के सपनों का भारत बन पाएगा. निगार, कनाडा

भारत को अच्छे राजनेताओं की ज़रूरत है. उन्हें ग़रीबों के बारे में सोचना होगा. गाँधी जी जो चाहते थे वो नहीं हुआ है. विन्नी, स्पेन

भूले नहीं
ऐसा नहीं है कि लोग गाँधी जी को भूल गए हैं. सिर्फ़ ये हुआ है लोग उन्हें ठीक से जानते नहीं. मैंने गाँधी जी के बारे में 27 वर्ष की उम्र में पढ़ना शुरू किया. राष्ट्रपिता के बारे में इतनी देर से पढ़ना शर्म की बात है. जो भी, मेरी नज़र में गाँधी जी असाधारण इच्छाशक्ति वाले साधारण इंसान थे.


अमित लांबा

विदेशी लोग भी गाँधी का नाम इज़्ज़त और श्रद्धा से लेते हैं. ये देख कर सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है. रतन अग्रवाल, इंग्लैंड

भारत में गाँधी के विचार अप्रासंगिक होते जा रहे हैं. शीर्ष पर बैठे नेताओं की ज़ुबान तक ही गाँधीवाद सीमित रह गया है. राजेश रंजन, पंजाब

जिस पीढ़ी ने गाँधी जी की सक्रियता को नहीं देखा, उसे कभी समझ नहीं आएगा कि कैसे उन्होंने भारत की जनता को आंदोलित किया. आलोचक जो भी कहें, इसमें कोई शक नहीं कि गाँधी जी एक व्यावहारिक आदर्शवादी थे जिन्होंने भारत को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से बदलने का प्रयास किया.प्रमोद द्विवेदी, अमरीका

गाँधीजी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया लेकिन दुख की बात है कि उनका सपना नहीं पूरा हो रहा. बृजेश, गुजरात

गाँधीजी के विषय में पढ़कर मुझे उनमें ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाए. कोई लाल बहादुर शास्त्री, वल्लभभाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस के भारत का जिक्र क्यों नहीं करता. अनिल प्रकाश पांडे, शारजाह

भारत सहित कई देशों का इतिहास गवाह है कि हमेशा उच्च वर्ग ही ग़रीब और निर्धन पर शासन करता रहा है. जब तक स्थिति नहीं बदलेगी सुधार संभव नहीं. यही कड़वी सच्चाई है. सईद बट, लाहौर, पाकिस्तान

भारत को महात्मा गाँधी का भारत बनने में अभी काफ़ी समय लगेगा. यहाँ तो राजनेता भ्रष्टाचारी हैं, नौकरशाही बदनाम है, लोग जाति और धर्म के नाम पर बँटे हैं. सूची काफ़ी लंबी है. संदीप राज, ब्रिटेन

गाँधीजी के सपनों को साकार न होने देने में काँग्रेस बहुत ज़िम्मेदार है. देश की आज़ादी के बाद काँग्रेस ने 50 वर्षों तक राज किया लेकिन गाँधीजी के बताए गए आदर्शों को पूरी तरह से भुला दिया गया. रामनाथ मुतकुले, इंदौर

मुझे अपने देश पर गर्व है. महात्मा गाँधी दुनिया के सबसे महान व्यक्ति थे. आकाश मेहरा, लंदन

भारत के राष्ट्रपिता को हमारा प्रणाम. अब ये वो भारत नहीं रहा जिसे सारा संसार सोने की चिड़िया कहता था. सोने की चिड़िया को बचाने के लिए बहुत बलिदान हुए. शांति के देवता बापूजी ने बिना लड़ाई लड़े भारत को आज़ाद कराया. आज ऐसा नेता कहाँ. शीला मदान, शिकागो

ये सत्य है कि आजकल ईमानदारी, सदाचार और ऐसी चीज़ें कम दिखाई देती हैं और भ्रष्टाचार फैला हुआ है लेकिन आज भी बहुत सारे संगठन समाज परिवर्तन में लगे हैं. मैं यह समझता हूँ कि भारत में राजनीतिक इच्छाशक्ति और क़ानून की शक्ति ज़रूरी है. रेवती रमन, न्यूज़ीलैंड

नई क्रांति की ज़रूरत
राजनीति और लोगों का चारित्रिक पतन देश की इस दशा के लिए ज़िम्मेदार है. हमें सबसे पहले ख़ुद को फिर समाज और फिर राजनीति में बदलाव के लिए नई क्रांति लानी होगी.


बजरंग

मैं भारतीय होने पर गर्व महसूस करता हूँ लेकिन उससे भी ज़्यादा गर्व की बात ये है कि मैं महात्मा गाँधी की ज़मीन पर पैदा हुआ. चिराग पटेल, केलीफ़ोर्निया, अमरीका

राजनीति और लोगों का चारित्रिक पतन देश की इस दशा के लिए ज़िम्मेदार है. हमें सबसे पहले ख़ुद को फिर समाज और फिर राजनीति में बदलाव के लिए नई क्रांति लानी होगी. बजरंग, बूँदी, राजस्थान

गाँधी जी के सपनों का भारत तो क़तई नहीं है. चारों ओर हिंसा, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक दंगे, ये सब भ्रष्ट नेता अपनी कुर्सी बचाने की ख़ातिर कराते हैं और देश को अंधकारमय भविष्य की गर्त में धकेल रहे हैं. नासिर हुसैन कुवैत

महात्मा गाँधी ने जिस भारत की कल्पना की थी, आज का भारत उन कल्पनाओं से बिल्कुल अलग है. महात्मा गाँधी ने जिन आदर्शों के सहारे भारत के विकास की नींव डाली थी, आज के नेता उन्हें ताक पर रखकर सिर्फ़ निजी निर्माण में लगे हुए हैं. सेवा और सदाचार की भावना उनके ज़हन से बिल्कुल निकल चुकी है. भौतिक सुख की तृष्णा में जीने वाले ये नेता भारत का विकास कदापि नहीं कर सकते. भारत में गाँधीवादी मूल्यों के पतन के लिए सबसे ज़्यादा जवाबदेह आज के नेता ही हैं. डॉक्टर नूतन स्मृति, देहरादून

आज का भारत गाँधी जी के सपनों का देश नहीं है. यह सही है कि गाँधी जी के विचार और सिद्धांत हमेशा के लिए मूल्यवान और प्रासंगिक हैं और भारत की तमाम समस्याओं का समाधान उनके सिद्धांतों में मिल सकता है. पियूष, वडोदरा, गुजरात

4 comments:

Prakash Badal said...

आपका स्वागत है,

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर अद्भुत आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है
मेरे ब्लॉग पर पधारें

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

gandhi ko nahin bhule,unke but lage hain yahan wahan, ham to gandhi ki baton ko bhul gaye, wo ab munna bhai ne yad dilai
kalyan ho
narayan narayan

KK Yadav said...

सुन्दर भाव -सुन्दर अभिव्यक्ति !! गाँधी जी सदैव प्रासंगिक हैं.
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डाक-टिकटों के संग्रह का शौक रखते हैं तो मेरे ब्लॉग शब्द-शिखर पर आकार देखें- "श्रृंगार-कक्ष की दीवारों से आरम्भ हुआ डाक टिकट संग्रह का शौक."