Wednesday, October 29, 2008

गाँधी की प्रासंगिकता पर बहस शुरू

बीबीसी संवाददाता,राजीव खन्ना की लेखनी से साभार गांधी चिंतन से जुड़े लोगों के लिए...
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मेरा जीवन ही मेरा संदेश है: महात्मा गाँधी

दांडी यात्रा के 80 वर्ष बाद दोबारा आयोजन ने एक बार फिर महात्मा गाँधी की प्रासंगिकता पर बहस छेड़ दी है.
साबरमती के गाँधी आश्रम में आज भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं.

वहाँ आने वाले जितने भी लोगों से यह पूछा गया कि आज के दौर में गाँधी प्रासंगिक हैं, तो जवाब यही मिला की गाँधी की बहुत ज़रूरत हैं.

गाँधी आश्रम में रह रहे चुनीभाई वैद्य का कहना था, ''गाँधी की तो आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत हैं. गुजरात में तो उनकी प्रासंगिकता का हिसाब ही नहीं.''

उनका कहना है कि गुजरात में जो हुआ वो तो किसी भी राष्ट्र को तोड़ सकता था. इस हालत में गाँधी की जो सीख थी कि हम सब भाई हैं, वही काम आई.

समन्वय

गाँधीवादी अमृत मोदी का मानना है कि दुनिया की तमाम अच्छाइयों का समन्वय गाँधी थे.

उनका कहना हैं, ''जहां-जहां भेद हैं और इस भेद को मिटाना इस समाज की आवश्यकता हैं. गाँधी ने एक विचार रखा. सबके दिलों को जोड़ना उनका उद्देश्य था.’


हर शख्स अपने दृष्टिकोण से गाँधी को देखता है

हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से गाँधी को देखता हैं. भानु शाह एक वरिष्ठ कलाकार हैं. उन्होंने गाँधी की अस्थियों का विसर्जन देखा था.

गाँधी आश्रम में बैठकर चित्र बनाते वक़्त उन्हें न केवल गाँधी बल्कि उस दौर के लोग याद आते हैं.

उनका कहना है, ''मैं उस ज़माने के किसी भी आदमी को मिलता हूँ तो हृदय में कुछ हो जाता है.''

भानु शाह जैसे बहुत से कलाकार अपनी कला से गाँधी को जोड़ते हैं.

गाँधी पर अध्ययन करने वाले रिज़वान क़ादरी नौजवान हैं.

उनका कहना है, ''गाँधी जी की हर वर्ग के लिए प्रासंगिकता रहेगी. गाँधी सत्य का पहले खुद पालन करते थे और उसी के बाद सबको उसका अनुसरण करने को कहते थे.''

काफ़ी लोग इस बात से परेशान हैं कि जहाँ एक ओर तो समाज का हर वर्ग गाँधी का आदर करता है, वहीं दूसरी और गाँधी की सीख और उनके बताई बातों में बहुत कम लोग दिलचस्पी लेते हैं.

लोग इस बात का उदाहरण देते हैं कि जब भी किसी भी देश में कोई भी आदमी समाज के लिए अच्छा काम करता हैं तो उसे 'वहां के गाँधी' का खिताब मिलता हैं.

शायद यही गाँधी की प्रासंगिकता को दर्शाता है.

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